Rajesh
पहरेदार की श्रम निष्ठा से मिला ज्ञान स्कॉटलैंड के एक सरदार सर रॉबर्ट इन्नेस पर एक समय बड़ा संकट आ गया और वह बड़ी विपत्ति में पड़ गया। अन्य लोगों की तरह उसने न तो अपने इष्ट-मित्रों पर बोझ डाला और न सरकार से मदद मांगी। उसे कोई काम भी नहीं आता था। मगर अपने श्रम पर स्वावलंबी रहने की उसमें दृढ़ निष्ठा थी। फलतः उसने पलटन में सिपाहीगीरी का काम स्वीकार कर लिया। एक दिन वह छावनी पर निगरानी कर रहा था कि एक व्यक्ति, जो उसे जानता था, यों ही किसी काम के लिए पलटन के कर्नल के पास आया। कर्नल किसी अन्य से बातें कर रहे थे, तब तक वह इन्नेस से, जो पहरेदार के वेष में थे, बातचीत करता खड़ा रहा। जब कर्नल से उसकी मुलाकात हुई, तो उसने कर्नल से कहा, आप बड़भागी हैं। आपके यहां कितने ही राजा नौकरी करते होंगे। यही रॉबर्ट इन्नेस को देखिए! इतना बड़ा सरदार यहां नौकरी कर रहा है। कर्नल ने रॉबर्ट को बुलाया और पूछा, क्या आप रॉबर्ट इन्नेस हैं। यदि हां, तो यह काम क्यों करते हैं? इन्नेस ने जवाब दिया, हां, यह सच है। मेरे पास एक पाई भी नहीं बची, इसलिए मैंने सोचा कि दूसरे का अन्न खाने के बजाय अपनी पदवी आदि को दो दिन के लिए भूलकर अपने श्रम पर निर्वाह करना श्रेष्ठ है। इसलिए मैंने यह नौकरी की। कर्नल उसकी श्रम निष्ठा पर खिल उठे। उन्होंने रॉबर्ट को अपने यहां भोजन के लिए बुलाया। भोजन करने के बाद वह एक पोशाक रॉबर्ट को देने लगे। राबर्ट ने कहा, धन्यवाद, पर मुझे इसकी जरूरत नहीं है। सिपाहीगीरी करने से पहले के कुछ कपड़े अभी मेरे पास पड़े हैं। कर्नल यह सुनकर और प्रभावित हुआ, और उसने रॉबर्ट को एक बड़े सम्मान की नौकरी दी। - Amar Ujala, 26-DEC-2014
Dec 26, 2014 9:23 AM